۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
سید کلب رشید رضوی

हौज़ा/कर्बला हमारी यूनिवर्सिटी है, कर्बला हमारी दर्सगाह है ज़माना कैसा भी हो और कितने ही मुख़ालिफ हों हम न झुके हैं, न बिके हैं और न हमने किरदार का सौदा किया है, हम क़यामत तक हक़ के साथ रहेंगे फिर इसके लिए चाहे जो क़ीमत चुकानी पड़े

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ज़ुल्म के ख़िलाफ़  इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के संघर्ष में आशूरा का वाक्या अल्लाह के नज़दीक सबसे अहम क़ुरबानी है। इमाम हुसैन का आन्दोलन, इस्लाम की तालीम से प्रवाहित होने वाली एक तहज़ीब है।  दस मुहर्रम सन 61 हिजरी क़मरी को कर्बला की धरती पर एक ऐसी शौर्य गाथा लिखी गई। सच्चाई पर कायम रहते हुए इमाम हुसैन ने ऐसी क़ुरबानी पेश की है जो दुनिया के लिए मिसाल बन गयी ।

शायर ने क्या खूब कहा है-
"इंसान को बेदार तो हो लेने दो
हर क़ौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन"

करबला सदियों से ही मुसलामानों और तमाम इंसानियत की दर्सगाह रही है, लेकिन जिन्होंने कर्बला को सिर्फ मज़लूमियत, मसाएब और तकलीफ की निगाह से देखा और फ़क़त इसके मसायबी पहलू तक ही महदूद रह गए और जिन्होंने कर्बला को जवांमर्दी, ईसार, इस्तेक़ामत, सब्र-ओ-रज़ा और ज़ाते इलाही पर तवक्कुल की निगाह से देखा उन्होंने दुनिया में भी।कामयाबी हासिल की और आखिरत में भी वही कामयाब होंगे।

कर्बला की दर्सगाह से दीन व दुनिया फतह करने की जीती जागती मिसाल के लिए मौलाना कल्बे रुशैद हमारी आँखों के सामने मौजूद हैं।  मौलाना ने हुसैनी दर्सगाह से जो सबक़ हासिल किया उसके नतीजे के दौर पर न सिर्फ मुसलमान बल्कि हिन्दुस्तान और बाहरी मुल्कों में रहने वाले भी तमाम धर्मों के लोग उनकी इल्म और हिकमत के कायल हैं।

दरे हुसैन पर सर झुकाने वाले ये मौलाना जब दुनियावी मैदान में निकलते हैं तो दुनिया इनके सामने सर झुकाती हुई नज़र आती है। मौलाना कल्बे रुशैद अपनी मजलिसों में ये बयान करने के साथ ही कि इमाम हुसैन कैसे शहीद हुए, ये भी बताते हैं कि इमाम क्यों शहीद हुए, क्यों हर दौर में इमाम हुसैन की हलमिन की सदा ज़िंदा रहेगी, कर्बला क़त्लगाह नहीं है।

कर्बला हमारी यूनिवर्सिटी है, कर्बला हमारी दर्सगाह है ज़माना कैसा भी हो और कितने ही मुख़ालिफ हों  हम न झुके हैं, न बिके हैं और न हमने किरदार का सौदा किया है, हम क़यामत तक हक़ के साथ रहेंगे फिर इसके लिए चाहे जो क़ीमत चुकानी पड़े।

जब भी कभी ज़मीर का सौदा हो दोस्तों
कायम रहो हुसैन के इनकार की तरह

मौलाना कल्बे रुशैद इन दिनों देश भर में मजलिसों और जुलूसों में पैगामे-हुसैनी को आम कर रहे हैं, साथ ही मौलाना मीडिया के ज़रिए इमाम हुसैन का संदेश सभी धर्मों के लोगों तक पहुँचाने की कोशिश में लगे हुए हैं।

अगर इनके हालिया प्रोग्राम की बात करें तो इन्होंने इस साल की पहली मजलिस कुंम में पढ़ी और उसके बाद अपने वतन हिंदुस्तान लौटकर  कई राज्यों में जैसे मुंबई, तेलंगाना, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में जाकर इमाम हुसैन के संदेश को आम किया। फिलहाल इनका अगला कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर ज़िले में होने जा रहा है, जिसमें बेला परसा, दहीयावर, अन्य गांव और शहर  शामिल हैं।

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